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प्रभुभक्त, जनभक्त, समाजभक्त, राष्ट्रभक्त के साथ पितृभक्त, मातृभक्त, आदर्श पति-पत्नी, सद्गृहस्थ आदि बहुत से प्रचलित शब्द इसके संकेत हैं। भक्ति एक योग है, एक साधना है। दूसरे के प्रति, संतान तथा माता-पिता से लेकर राष्ट्र-समाज एवं परमेश्वर तक जितना समपर्ण है वह भक्ति है। हाँ, इसका क्रमिक विकास अवश्य है। इसका प्रारंभिक रूप जहाँ मातृ-पितृभक्ति है, तो यही अपने विकसित रूप समाजभक्ति, राष्ट्रभक्ति और अंततः प्रभुभक्ति के रूप में स्वयं को प्रकट करती है।

Many popular words such as Lord Bhakt, Public Bhakt, Social Bhakt, Patribhakt with Patribhakt, Mother Devotee, Ideal Husband-Wife, Sadhgrihastha etc. are indications of this. Bhakti is a Yoga, a Sadhana. Devotion to others, from children and parents to nation-society and God, is devotion. Yes, it is definitely a gradual development. While its initial form is maternal-paternal bhakti, it manifests itself in its developed form in the form of social bhakti, patriotism and finally godliness.

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दिव्ययुग

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