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मारने वाला वीर हो सकता है, लेकिन नहीं मारने वाला महावीर होता है। अपने ह्रदय की दृढ़ अहिंसा के साथ समस्त प्राणियों के प्रति सजल करुणा हो। मरने वाले तथा मारने वाले दोनों में सामान प्राणों-अद्वैत का भाव हो, तभी इसकी सार्थकता है। लेकिन यदि मन में भय हो, स्वयं के प्राणों का व्यामोह एवं कायरता छाई हो, तब उसे अहिंसा का नाम देना आदर्श को पतनोन्मुखी बनाना है।

One who kills can be a hero, but one who does not kill is a Mahavir. With firm non-violence in your heart, have gentle compassion towards all living beings. It is meaningful only when both the person who dies and the one who kills should have the feeling of non-duality. But if there is fear in the mind, paranoia and cowardice of one's own life, then to give it the name of non-violence is to turn the ideal towards degradation.

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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