देव दयानन्द जी महराज हजारों वर्षों से विलुप्त हुई ऋषि परम्परा के उज्जवल दीपक थे। आधुनिक विश्व के प्रथम ऋषि कहना उनको अनुचित न होगा। महाभारत काल के बाद कोई ऋषि पैदा हुआ होगा ऐसा प्रतीत नहीं होता। वैसे तो भारतभूमि अत्यंत ही उर्वरा भूमि है। इस कालखण्ड में उनके महान व्यक्तित्व उत्पन्न हुए जिन्होंने अपने बौद्धिक, शारीरिक एवं चारित्रिक बल से विश्व को न केवल शासित किया अपितु एक श्रेष्ठ जीवन शैली की परम्परा का निर्वहन करते-करते मनुष्यों को लौकिक एवं पारलौकिक सुख का रास्ता बताय और समस्त विश्व का मार्गदर्शन किया। वह भारतभूमि ही है जहाँ पर परमपिता परमेश्वर ने मानव सृष्टि की रचना की। सभ्यता, संस्कृति का उद्गम स्थल यह भारत भूमि ही है, जहाँ पर कोटि-कोटि ऋषि पैदा हुए जिन्होंने मानव सभ्यता को इस परमपिता की वेदवाणी का सन्देश सुनाया परन्तु एक समय ऐसा भी आया जो न केवल हमारे लिए वरन समस्त विश्व के लिए अत्यन्त दुःखदायी सिद्ध हुआ। महाभारत का युद्ध इतना विनाशकारी था कि जो संस्कृति जो सभ्यता अपने चरम पर थी वह एक समय धूल में मिल गई।
हमारा सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान धीरे-धीरे नष्ट होता चला गया। जिस संस्कृति ने करोड़ों वर्षों तक सम्पूर्ण विश्व को शासित किया वह एक दिन विलुप्त-प्राय हो गई। यह भारत भूमि जो समस्त विश्व की मार्गदर्शक थी वह विधर्मियों की गुलाम हो है क्योंकि हमारे मार्गदर्शक ऋषि थे जो हमें नित नये ज्ञान-विज्ञान प्रदान करते थे परन्तु यह ईश्वरीय नियम है कि वह अपनी वाणी की रक्षा करता है। अनेक जन्मों के पुण्य प्रताप से उस परमपिता ने ऐसी दिव्यमान को जन्म दिया जो ईश्वरीय वाणी की उद्वारक बनी। वे ऋषि दयानन्द, जिन्होंने वेदों का पुनरुद्वार किया, जिन्होंने वेद की मान्यताओं, वेद के सिद्धांतों को पुरार्स्थापित किया। वे ऋषि दयानन्द ही थे जिन्होंने सम्पूर्ण वैदिक क्रान्ति का आगाज किया।
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha - 33 | Explanation of Vedas | वेद सन्देश - व्रत से सुख एवं बन्धन से दुःख होता है
ऋषि दयानन्द मूल रूप से विशुद्ध आध्यात्मिक विचारक होते हुए बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ते हुए अप्रतिम प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने न केवल परमपद प्राप्त किया अपितु मानव तथा राष्ट्र के चतुर्दीक उन्नयन हेतु मन, वचन, कर्म से अथक प्रयास किया। मानव जीवन का कोई एक भी पहलू अछूता दिखाई नहीं देता जिसे ऋषि ने न छुआ हो। उन्होंने न केवल जाति, धर्म एवं राष्ट्र के लिए ही चिंतन किय अपितु समस्त मानव जाति के कल्याण की बात कही। इसी कारण एक धार्मिक आध्यात्मिक दयानन्द और राष्ट्रवादी में अंतर क्र पाना दुःसाध्य प्रतीत होता है। सार्वजानिक जीवन में प्रविष्ट होने पर एक सच्चे आध्यात्मिक पुरुष थे। उनकी सत्य की उपासना ही सच्ची उपासना थी। वे सत्य के प्रति कितने आग्रही थे कि आर्य समाज के नियम बनाते वक्त हर उपुक्त जगह सत्य का प्रयोग करते दिखाई दिये। धर्म के मिथ्या आडम्बरों पर आक्रोश भरी उनकी कठोरता यथार्थ को उद्घाटित करने वाली सधी एवं सीधी शैली है। धार्मिक, आध्यात्मिक एवं राष्ट्रवादी विचारों की पूर्णता में लीन ऋषि ने तात्कालिक दुर्व्यवस्था एवं भारतीय संस्कृति की अधोगति को समाप्त करने के लिए भावावेग पूर्ण वाग्मिता तथा निर्भीकता से साहित्य सृजन एवं लेखन तथा मौखिक प्रवचन किये। उनके उज्जवल चरित्र एवं अद्वितीय व्यक्तित्व का प्रतीक है। राजनैतिक परिधि से सम्पूर्ण रूप से, सर्वथा असम्पृक्त रहते हुए राजनीति के क्षेत्र में प्रभुत अवदान जैसे सन्त की सर्वप्रमुख विशेषता है।
ऋषि के राजतन्त्र का आधार वेद एवं तद्नुरूप आर्षग्रन्थ है। राजनीतिक दर्शन के लिए वे मनु महाराज को ज्यादा मान्यता देते हैं। अपने क्रन्तिकारी ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में राजनीति पर ही एक समुल्लास लिख देते हैं। सत्य यह है कि महर्षि दयानन्द की युग चेतना से भिन्न थी, परन्तु उनके राजनीतिक दर्शन में अनेक ऐसे शाश्वत तत्व निहित हैं और सर्वभौमिक है जो वर्तमान युग में भी सर्वथा उपयुक्त एवं अनुपालनीय हैं।
ऋषि के कथन की स्पष्टता उनके जीवन की स्पष्टता का प्रतिफल है। उन्होंने अपनी प्रत्युत्पन्न मति एवं वर्षों की कठोर साधना से अर्जित ज्ञान से अपने विचारों के सत्यापन हेतु वेदादि आर्षग्रंथो को आधार बनाया। यही कारण है कि ऋषि ने राज्य की उत्पति, विकास, प्रकृति, कार्य, न्याय, अर्थ, राष्ट्ररक्षा के विषय के पक्ष-पोषण में हर जगह वेदादि आर्षग्रन्थों का प्रमाण एवं भारत के गौरवपूर्ण प्राचीन इतिहास का उद्धरण में उपलब्ध ज्ञान के आधार पर ही उन्होंने अपने समस्त विचारों को श्रेणीबद्ध किया है।
दयानन्द एक तरफ आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए जहाँ व्यक्तिगत व्यवहार की शुद्धता पर बल दिया वहीँ राजनैतिक जीवन में भी उच्च नैतिक मूल्यों को आवश्यक बताया। दयानन्द दर्शन व्यक्तिगत व्यवहार शुद्धि एवं उच्च नैतिक मूल्यों के बिना राजनैतिक जीवन की कल्पना भी नहीं करता।
ऋषि विश्व में छल-कपट, धोखाधड़ी, अवसरवादिता, साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, युद्धोन्माद, शोषण एवं हिंसा के फ़ैलाने का मूल कारण राजनैतिक एवं में व्यवहार शुद्धि एवं नैतिक मूल्यों की कमी को मानते हैं। उनका यह ध्रुव विश्वास था कि धर्म नीति से पृथक होकर राजनीति सर्वथा स्वार्थ एवं कपट नीति बन जाती है। अपने इसी विश्वास के फलस्वरूप दयानद ने राजनीति को वेदसम्मत स्वीकार करते हए राज्य संचालन का आधार धर्म को माना है जिससे समस्त मानव जाति के प्रत्येक लौकिक एवं पारलौकिक प्रयोजनों की पूर्ति सम्भव हो। यही कारण है कि उन्होंने 'राज' शब्द के साथ नीति के स्थान पर 'धर्म' शब्द को प्रयोग धारण करने तथा अभ्युदय एवं निःश्रेयस की सिद्धि के अर्थ में किया है।
किसी सम्प्रदाय विशेष के अर्थ में नहीं। जिस कारण आत्मा के आभाव में शरीर संज्ञा शुन्य होकर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार धर्म शून्य राजनीति भी देश व राष्ट्र को नष्ट कर देती है। इसलिए ऋषि ने धर्मानुसार 'राजनीति को स्वीकृति प्रदान की है जिससे प्रत्येक मनुष्य का प्रयोजन पुरा हो सके। प्रत्येक मानव के लिए उसकी उन्नति, प्रगति के समान अवसर प्राप्त हो यही उनका मानवता वादी विचार है। धर्मपूर्वक व्यवहार प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है। उनके अनुसार मनुष्य उसको कहना कि मननशील होकर स्वात्मवत अन्यों के सुख-दुःख और हानि-लाभ को समझे। इसमें उसको कितना ही दारुण दुःख प्राप्त क्यों न हो, चाहे प्राण भी भले ही चले जावें, परन्तु इस मनुष्यपन रूप धर्म से पृथक कभी न होवें।' उनके मानवतावाद के सर्वोत्तम स्वरुप का नाम ही राष्ट्रवाद है। उन का वेद-प्रतिवादित वैज्ञानिक मानवतावाद अर्थनीति, धर्मनीति, विदेश निति, और समाजनीति में सर्वत्र व्याप्त है। उनका दर्शन ऐसे समाज की रचना का दर्शन है जिसमें आर्थिक न्याय, प्रत्येक स्त्री-पुरुष को स्वतंत्रता और अवसर की समानता, उच्च नैतिक मूल्यों का विकास, आध्यात्मिक वैदिक जीवन मूल्यों की स्थापना, सहयोग सदभाव, विश्वबन्धुता की कामना और सत्यकर्म करते हए निःश्रेयस की अभिलाषा निहित हो। दयानन्द की ऐतिहासिक पद्धति हमारी संस्कृति, सभ्यता, धर्म एवं दर्शन के उच्चादर्शों के आधार पर भविष्य के प्रति सचेष्ट एवं सजग करते हुए राष्ट्ररक्षा एवं विकास का मार्ग प्रशस्त करते हुए उच्च आध्यात्मिक चेतना प्राप्ति का मार्गदर्शन करती है।
ऋषिवर देवदयानन्द के प्राणिमात्र के लिए कल्याणकारी विचारों को प्रति व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए सभा कृतसंकल्प है। इस कार्य के लिए आप सभी महानुभावों से सभा सहायता की अपेक्षा करती है कि ऋषिवर के विचारों और उनके द्वारा स्थापित उच्च जीवनमूल्यों को अपने जीवन में धारण करते हुए परम कल्याणकारी वेदमाता के सन्देश को जन-जन तक पहुंचाने में सहायता करें। परमपिता परमात्मा हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगे। - आचार्य योगेंद्र आर्य
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