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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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  • भावनात्मक एकता

    भावनात्मक एकता- विवेक की माँग है कि इस अनेकता को घटाया और मिटाया जाय। एक धर्म, एक ईश्‍वर, एक दर्शन, एक आचार, एक जाति की भावनात्मक एकता स्थापित की जाय और उसका व्यावहारिक स्वरूप एक राष्ट्र में, एक भाषा में विकसित किया जाय। पृथकता के लिए आग्रह बनाये रखकर हम हर दृष्टि से घाटे में रहेंगे।• Wisdom demands that...

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  • पहले जानो फिर मानो

    पहले जानो फिर मानो- यदि आप ईश्‍वर के बारे में जानकारी चाहते हो तो उसकी बनाई हुई सृष्टि को देखो। ईश्‍वर भौतिक रूप से साकार रूप में किसी के पास नहीं आता। वह तो अपने भीतर ही है। उसकी लीला को देखा और समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आप पानी व्यवस्था को ही देखें तो पता चलेगा कि कितना जबरदस्त उसका प्रबन्ध है। पानी के बिना संसार चल नहीं सकता।...

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  • महर्षि दयानन्द का शुद्ध चिन्तन

    महर्षि दयानन्द का शुद्ध चिन्तन-ऋषि दयानन्द ने अपना सारा जीवन गुरु को दिए गए वचनों का पालन करने में अर्पित कर दिया। उनका चिन्तन शुद्ध वैदिक था। उन्होंने भ्रम, अंधविश्‍वास व कुरीतियों को दूर करने का सदैव प्रयास किया। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश जैसा अमर ग्रन्थ लिखकर अनेक रूढियों और भ्रान्तियों को दूर किया। इसके अतिरिक्त...

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  • सफल जीवन की इच्छा

    सफल जीवन की इच्छा- प्रत्येक मनुष्य सफल और सार्थक जीवन तथा आनन्द और प्रसन्नता से भरा जीवन चाहता है। प्रकृति में आनन्द सर्वत्र बिखरा पड़ा है, पर उसे समेटने वाला जो मन होना चाहिए, वह मन हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए और हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिये ही सृष्टि की रचना की है। प्रकृति दोनों हाथ...

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