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शिक्षा के साथ स्वावलंबन जोड़कर रखा गया होता, तो न तो शिक्षित युवक, नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते, न ही उनके अभिभावक हैरान-परेशान होते। सरकार की स्कूल-कॉलेजों पर खर्च की गयी भारी धनराशि बेकारी बढ़ाने में न लगती। शिक्षा पाकर निकले हुए युवा इतने परिश्रमी एवं अनुभवी होते कि बेकारी-बेरोजगारी उनके पास न फटकती। देश के विचारशील वर्ग तथा जन-सामान्य का भी कुछ कर्तव्य होता है कि निदान के लिए कुछ कारगर कदम उठाए जाएँ ? यह विचारणीय है। सभी जानते हैं कि सरकारी योजनाएँ जनसामान्य के सहयोग से ही सफल हो पाती है।

Had self-reliance been linked with education, then neither the educated youths roaming around for jobs, nor their parents would have been perplexed. The huge amount spent by the government on schools and colleges is not used to increase unemployment. The youth who came out after getting education would have been so hardworking and experienced that unemployment would not have hit them. The thinking class of the country and the general public also have some duty that some effective steps should be taken for the diagnosis? This is worth considering. Everyone knows that government schemes can be successful only with the cooperation of the general public.

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