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मनुष्य का धर्म है की वह दूसरों की भलाई करे। मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह दूसरों के काम आए। यदि वह शक्ति होते हुए भी दूसरों की सहायता नहीं करता तो वह पशु के समान ही है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर दूसरों के लिए वह कितना जिया; इसी से उसके जीवन की उत्कृष्टता का पता चलता है। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तो मनुष्य उद्योग करता ही है, परंतु दूसरों के लिए कितना प्रयत्न किया; इसी से उसकी दिव्यता प्रकट होती है।

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The welfare of others. The religion of man is to do good to others. The meaning of human life is that it is useful to others. If he does not help others despite having power, then he is like an animal. Everyone lives for himself, but how much he has lived for others; This shows the excellence of his life. Man does industry to maintain his existence, but how much effort he has made for others; This is how his divinity manifests.

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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