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प्रत्येक मनुष्य सफल और सार्थक जीवन तथा आनन्द और प्रसन्नता से भरा जीवन चाहता है। प्रकृति में आनन्द सर्वत्र बिखरा पड़ा है, पर उसे समेटने वाला जो मन होना चाहिए, वह मन हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए और हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिये ही सृष्टि की रचना की है। प्रकृति दोनों हाथ फैलाकर हमें खुशियां ही खुशियां देना चाहती है। लेकिन हम हैं कि उन खुशियों को बटोर ही नहीं पाते। झोली में आई खुशियां और आनन्द हमारी कुछ कमजोरियों के कारण तथा मानसिक दुर्बलताओं के कारण लौट जाती हैं और हर समय चिन्ता करते हुए तनाव में ही जीना हमारी नियति बनी रहती है। डॉक्टर ने कहा है इसलिए पार्क में टहलने चले जाते हैं।

किसी तरह तीन-चार चक्कर पूरे हो जाएं तो छुट्टी मिले। क्या कभी पार्क के सौन्दर्य को निहारा है, प्रकृति की छटा पर विचार किया है? पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां सब आपसे मिलने को बैचेन हैं, आपके साथ मीठी-मीठी बातें करना चाहती हैं। लेकिन आपके पास तो फुरसत ही नहीं है उनसे बात करने की। वे तो आपको तनाव से मुक्त करके आनन्द प्रदान करने के लिए आतुर हैं, बेचैन हैं, परन्तु आप तो सजावटी फूलों और गमलों की छटा देखकर ही खुश होना चाहते हैं। ऐसे में वास्तविक आनन्द कैसे मिलेगा? कैसे जीवन खुशहाल बनेगा? कैसे जीवन में नकारात्मकता से मुक्ति मिलेगी?

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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