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पाप का प्रकटीकरण, पाप को हलका करता है और चित पर छाए हुए कलुष से मुक्ति भी दिलाता है कि जिस प्रकार धुलाई का कार्य धोबी का है, उसी प्रकार इन पापों का प्रायश्चित, गुरु जैसी मार्गदर्शक सत्ता के सान्निध्य में करने की परंपरा है। प्रायश्चित साधना द्वारा इन कर्मों के बोझ से मुक्त होते ही - व्यक्तित्व पर साधना द्वारा दैवी रंग चढ़ा देने का प्रावधान है। इन दोनों प्रक्रियों के पूर्ण होते ही व्यक्तित्व प्रकाशित हो उठता है और अंतर्मन पर ईश्वरीय प्रकाश का रंग चढ़ जाता है।

The manifestation of sin, lightens the sin and also gives freedom from the blemish on the mind that just as the washing work is done by a washerman, in the same way it is a tradition to atone for these sins, in the presence of a guiding authority like Guru. As soon as one is freed from the burden of these actions by atonement sadhna - there is a provision to impart divine color on the personality through sadhna. As soon as these two processes are completed, the personality gets illuminated and the color of divine light rises on the inner being.

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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