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आंतरिक पवित्रता से प्राप्त सौंदर्य व मधुरता की तुलना, किसी सांसारिक वस्तु से नहीं की जा सकती है। बाहर की अहंकार की दौड़ है और इसीलिए वह विपत्ति व अतृप्ति का दंड अपने साथ लाती है। अंदर की स्थिरता-दृष्टिकोण को गरिमामय बनाने पर निर्भर है और उसके साथ आंतरिक आनंद का परितोष जुड़ा हुआ है। जीवन का आनंद लेना हो तो उसके लिए अंतर की गहराई में उतरने का समुद्र के तल से मोती ढूँढ़ लाने का साहस हमें दिखाना होगा, तभी उस सहस की परिणति आत्मिक आनंद की प्राप्ति के रूप में हो पाएगी।

The beauty and sweetness obtained from inner purity cannot be compared with any worldly object. There is a race of ego outside and that is why it brings with it the punishment of calamity and dissatisfaction. Inner stability depends on dignifying the outlook and with it comes the gratification of inner bliss. If we want to enjoy life, then we have to show the courage to find the pearl from the bottom of the sea, to descend into the depths of the inner world, then only that courage will be able to culminate in the attainment of spiritual bliss.

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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