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आजकल खोखले व्यक्तित्व सभ्यता का आईना है। वे शक्ति सम्पन्न है, उन्होंने निर्णय लेने और आदेश देने की शक्ति प्राप्त करती है। इन लोगों के निर्णयों और आदेशों पर एक सुसंस्कारित समाज की स्थापना नहीं हो सकती। कुंठित, हिंसाग्रस्त, स्वार्थी और तनाव में जीने वाले समाज का उदय ऐसे लोग कर सकते हैं, यही हम देख भी रहे हैं। विनम्रता व्यवहार से कोसो दूर हो गयी है। सहृदयता भावाचक संज्ञा मात्र बन गयी है, उसके अस्तित्व कही दिखायी नहीं देता। सामाजिक दायित्वों से हर कोई बचना चाहता है। सम्पूर्ण विश्व में मानवता के भाव लुप्त हो गये हैं। संस्कारों पर भौतिक सभ्यता की कालस है।

अधिक दुख इस बात का है कि सभ्यता का भास्कर सर्वप्रथम भारतभूमि पर उदित हुआ था। वहां यह संकट क्यों ? पत्रकारों का कार्य सनसनी पैदा करना, शिक्षक का कार्य केवल सूचना देना, नौकरशाह का कार्य अपने प्रभाव को दिखाना, राजनेता का कार्य चुनाव जीतना, धर्मगुरुओं का कार्य चेले बनाना, ऐसे में कहां है विश्व ? कहां है राष्ट्र ? कहां है मानव ? हर कोई बिक रहा है।

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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  • पहले जानो फिर मानो

    यदि आप ईश्‍वर के बारे में जानकारी चाहते हो तो उसकी बनाई हुई सृष्टि को देखो। ईश्‍वर भौतिक रूप से साकार रूप में किसी के पास नहीं आता। वह तो अपने भीतर ही है। उसकी लीला को देखा और समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आप पानी व्यवस्था को ही देखें तो पता चलेगा कि कितना जबरदस्त उसका प्रबन्ध है। पानी के बिना...

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    ऋषि दयानन्द ने अपना सारा जीवन गुरु को दिए गए वचनों का पालन करने में अर्पित कर दिया। उनका चिन्तन शुद्ध वैदिक था। उन्होंने भ्रम, अंधविश्‍वास व कुरीतियों को दूर करने का सदैव प्रयास किया। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश जैसा अमर ग्रन्थ लिखकर अनेक रूढियों और भ्रान्तियों को दूर किया। इसके अतिरिक्त...

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    प्रत्येक मनुष्य सफल और सार्थक जीवन तथा आनन्द और प्रसन्नता से भरा जीवन चाहता है। प्रकृति में आनन्द सर्वत्र बिखरा पड़ा है, पर उसे समेटने वाला जो मन होना चाहिए, वह मन हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए और हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिये ही सृष्टि की रचना की है। प्रकृति दोनों हाथ फैलाकर...

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