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आजकल खोखले व्यक्तित्व सभ्यता का आईना है। वे शक्ति सम्पन्न है, उन्होंने निर्णय लेने और आदेश देने की शक्ति प्राप्त करती है। इन लोगों के निर्णयों और आदेशों पर एक सुसंस्कारित समाज की स्थापना नहीं हो सकती। कुंठित, हिंसाग्रस्त, स्वार्थी और तनाव में जीने वाले समाज का उदय ऐसे लोग कर सकते हैं, यही हम देख भी रहे हैं। विनम्रता व्यवहार से कोसो दूर हो गयी है। सहृदयता भावाचक संज्ञा मात्र बन गयी है, उसके अस्तित्व कही दिखायी नहीं देता। सामाजिक दायित्वों से हर कोई बचना चाहता है। सम्पूर्ण विश्व में मानवता के भाव लुप्त हो गये हैं। संस्कारों पर भौतिक सभ्यता की कालस है।

अधिक दुख इस बात का है कि सभ्यता का भास्कर सर्वप्रथम भारतभूमि पर उदित हुआ था। वहां यह संकट क्यों ? पत्रकारों का कार्य सनसनी पैदा करना, शिक्षक का कार्य केवल सूचना देना, नौकरशाह का कार्य अपने प्रभाव को दिखाना, राजनेता का कार्य चुनाव जीतना, धर्मगुरुओं का कार्य चेले बनाना, ऐसे में कहां है विश्व ? कहां है राष्ट्र ? कहां है मानव ? हर कोई बिक रहा है।

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