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सामाजिकता पर्वों की प्राकृति का अभिन्न अंग है। ये पर्व हमें अधिक-से-अधिक सामाजिक सरोकारों की और प्रवृत्त करते हैं। पर्व-परंपरा हमारी संस्कृति में मिठास की तरह घुली हुई है और यह सिर्फ उत्सव भावना का ही निर्वहन नहीं करती, अपितु इसमें हमारी विचारधारा के बीच भी समाहित हैं। आज के युग में पर्व-परंपरा और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है; क्योंकि आज इनसान एकदूसरे से कट रहा है, दूर-दूर हो रहा है और वर्तमान समय की मुश्किलों में घिरता जा रहा है। उसका जीवन इतना ज्यादा व्यस्त हो गया है कि वह समाज को तो क्या, अपने परिवार को भी समय नहीं दे पा रहा।

maharshi swami dayanand saraswati

Socialization is an integral part of the nature of festivals. These festivals tend to make us more and more social concerns. The festival-tradition is dissolved like sweetness in our culture and it not only discharges the festive spirit, but is also embedded in it among our ideology. In today's era, the festival-tradition becomes even more relevant; Because today human beings are being cut off from each other, getting far and wide and getting entangled in the difficulties of the present time. His life has become so busy that he is not able to give time to the society as well as to his family.

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वेद ज्ञान

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दिव्ययुग

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  • पहले जानो फिर मानो

    यदि आप ईश्‍वर के बारे में जानकारी चाहते हो तो उसकी बनाई हुई सृष्टि को देखो। ईश्‍वर भौतिक रूप से साकार रूप में किसी के पास नहीं आता। वह तो अपने भीतर ही है। उसकी लीला को देखा और समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए आप पानी व्यवस्था को ही देखें तो पता चलेगा कि कितना जबरदस्त उसका प्रबन्ध है। पानी के बिना...

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  • महर्षि दयानन्द का शुद्ध चिन्तन

    ऋषि दयानन्द ने अपना सारा जीवन गुरु को दिए गए वचनों का पालन करने में अर्पित कर दिया। उनका चिन्तन शुद्ध वैदिक था। उन्होंने भ्रम, अंधविश्‍वास व कुरीतियों को दूर करने का सदैव प्रयास किया। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश जैसा अमर ग्रन्थ लिखकर अनेक रूढियों और भ्रान्तियों को दूर किया। इसके अतिरिक्त...

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  • सफल जीवन की इच्छा

    प्रत्येक मनुष्य सफल और सार्थक जीवन तथा आनन्द और प्रसन्नता से भरा जीवन चाहता है। प्रकृति में आनन्द सर्वत्र बिखरा पड़ा है, पर उसे समेटने वाला जो मन होना चाहिए, वह मन हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए और हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिये ही सृष्टि की रचना की है। प्रकृति दोनों हाथ फैलाकर...

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