आर्यसमाज का वर्तमान में महत्त्व
आर्यसमाज का वर्तमान में महत्त्व कुछ लोग अपने ही दु:खों के गीत गाते हैं, होली हो या दीवाली, हरदम मातम मनाते हैं। उन्हीं की रागिनी पर झूमती है दुनिया, जो जलती चिता पर बैठकर वीणा बजाते हैं।
आर्यसमाज के स्वर्णिम-इतिहास के संदर्भ में उपरोक्त पंक्तियां आज कितनी सटीक प्रतीत होती हैं? वास्तव में ऐसे ही तो घर-फूंक कर तमाशा देखने वाले अलमस्त लोगों का टोला रहा है आर्यसमाज। ऐसे ही तो थे इस संगठन के संस्थापक-आनन्द कन्द आदित्य ब्रह्मचारी स्वामी दयानन्द। जिन्होंने अपनी अल्हड़ जवानी को लुटा दिया इस भारत देश के पुनर्जागरण के लिए खोए स्वाभिमान की पुन: प्राप्ति के लिए।
आर्य समाज विवाह की प्रक्रिया
आर्य समाज विवाह पण्डित जी द्वारा वैदिक मन्त्रों से हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार सम्पन्न कराया जाता है जिसमें पूजा, हवन, सप्तपदी, हृदय स्पर्श, ध्रुव-दर्शन, सिन्दूर, आशीर्वाद आदि रस्में करायी जाती हैं । विवाह संस्कार के दौरान फोटो खीचें जाते हैं जो विवाह का दस्तावेजी साक्ष्य होता है । विवाह सम्पन्न होने के पश्चात् मन्दिर की ओर से आर्य समाज विवाह प्रमाण – पत्र प्रदान किया जाता है । आर्य समाज द्वारा प्रदान किया गया विवाह प्रमाण – पत्र एक विधिक पति – पत्नी होने का साक्ष्य होता है, जो पूरी तरह वैध और विधिक होता है तथा जो माननीय उच्चतम न्यायलय एवं उच्च न्यायालय द्वारा विधि मान्य है ।
सामाजिक दायित्व
आजकल खोखले व्यक्तित्व सभ्यता का आईना है। वे शक्ति सम्पन्न है, उन्होंने निर्णय लेने और आदेश देने की शक्ति प्राप्त करती है। इन लोगों के निर्णयों और आदेशों पर एक सुसंस्कारित समाज की स्थापना नहीं हो सकती। कुंठित, हिंसाग्रस्त, स्वार्थी और तनाव में जीने वाले समाज का उदय ऐसे लोग कर सकते हैं, यही हम देख भी रहे हैं। विनम्रता व्यवहार से कोसो दूर हो गयी है। सहृदयता भावाचक संज्ञा मात्र बन गयी है, उसके अस्तित्व कही दिखायी नहीं देता। सामाजिक दायित्वों से हर कोई बचना चाहता है। सम्पूर्ण विश्व में मानवता के भाव लुप्त हो गये हैं। संस्कारों पर भौतिक सभ्यता की कालस है।